के के उपाध्याय
“कलम तलवार से ताक़तवर होती है” — यह कोई नारा नहीं, यह पत्रकारिता की आत्मा है। हर वर्ष जब पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है। यह दिन हमें उन कलमकारों की याद दिलाता है जिन्होंने सत्य के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए।
भारत में पत्रकारिता की परंपरा केवल सूचनाएँ देने की नहीं, बल्कि सत्य और न्याय की मशाल थामने की रही है। और जब हम इस गौरवशाली परंपरा की बात करते हैं, तो सबसे पहले स्मरण होता है गणेश शंकर विद्यार्थी का — एक ऐसे पत्रकार का जिन्होंने केवल कलम नहीं चलाई, बल्कि दंगों की आग में खुद को झोंक दिया, ताकि इंसानियत बची रहे।
विद्यार्थी जी का जीवन संदेश देता है कि पत्रकारिता केवल “कवर स्टोरी” नहीं होती, वह साहस और सिद्धांत की परीक्षा होती है।
- जब पत्रकारिता जेल में थी: आपातकाल का काला अध्याय
भारत के लोकतंत्र में आपातकाल (1975–77) वो दौर था जब पत्रकारिता की स्वतंत्रता को कुचल दिया गया। प्रेस पर सेंसरशिप लगी, अख़बारों की इबारतें सरकारी आदेशों से कटती थीं, और रेडियो/टीवी केवल सत्ता की भाषा बोलते थे।
गणेश शंकर विद्यार्थी की परंपरा, जो सत्ता से सवाल करना सिखाती थी, उस दौर में सरकारी ज़ुल्म के नीचे दबा दी गई।
पत्रकारों को जेल में डाला गया, कई अख़बार बंद कर दिए गए, और पत्रकारिता एक पेशा नहीं, अपराध बना दी गई। यह वह समय था जब सच बोलना देशद्रोह कहलाने लगा।
इसलिए आज जब हम पत्रकारिता दिवस मनाते हैं, तो यह केवल उत्सव नहीं, स्मरण और संकल्प का दिन है — कि फिर कभी कलम की आज़ादी पर ताला न लगे।
पत्रकारिता की तीन अमूल्य ज़िम्मेदारियाँ:
1. सत्य के प्रति निष्ठा:
गणेश शंकर विद्यार्थी हों या आज का ज़मीनी रिपोर्टर — सच्ची पत्रकारिता वही है, जो सत्ता, भीड़ और भय तीनों से स्वतंत्र हो।
2. जनहित में सवाल:
पत्रकार का काम चाटुकारिता नहीं, चौथा स्तंभ बनना है। वह न राजा का सेवक है, न भीड़ का भक्त।
3. नैतिक उत्तरदायित्व:
जब सूचनाएं हथियार बन जाएं, तब पत्रकार वही है जो सच को जाँचकर बोले, शोर में भी मौन में देखे।
पत्रकारिता दिवस केवल पत्रकारों का पर्व नहीं — यह हर उस नागरिक का दिन है जो सच जानने और कहने का हक़ रखता है।
आज जब टीआरपी, ट्रेंड और ट्रोल्स का युग है, तब विद्यार्थी जी की तरह पत्रकारों की ज़रूरत है —
जो कलम से आग न लगाएं, बल्कि इंसानियत के दीप जलाएं।
आइए, इस दिन हम यह संकल्प लें:
हम सिर्फ खबरें नहीं पढ़ेंगे, सच्चाई भी परखेंगे।
सिर्फ बोलने वालों को नहीं सुनेंगे, जो चुपचाप सच ढूंढ़ रहे हैं उन्हें पहचानेंगे।
आज ज़रूरत है वास्तविक पत्रकारों की, ना कि ‘स्टूडियो योद्धाओं’ की। हमें चाहिए वो लोग जो सत्ता के गलियारों में नहीं, ज़मीन की धूल में सच्चाई खोजें।
पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।