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कलेक्टर सहकारी बैंक के प्रशासक.... तो बैंक लोक प्राधिकारी कैसे...? और बैंक है तो सीईओ सुनवाई में तलब क्यों नहीं..?

एमपी धमाका, विदिशा 
सूचना का अधिकार अधिनियम लागू हुए 20 साल का लंबा समय हो चुका है, लेकिन अधिकारी इस कानून को अपने-अपने तरीके से पालन करने में आज भी यकीन रखते हैं। 
जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक में जब से संचालक मंडल भंग हुआ है, बैंकों की कमान सरकार ने कलेक्टरों को प्रशासक बनाकर दे दी है अर्थात जिला सहकारी बैंक पूर्ण रूप से सरकार के नियंत्रण में हैं। इसलिए सूचना का अधिकार के तहत बैंक का लोक सूचना अधिकारी कलेक्टर कार्यालय स्वत: हो गया है। लेकिन अपील अधिकारी समेत कलेक्टर कार्यालय के लोक सूचना अधिकारी इसे मानने तैयार नहीं हैं। 
जब भी बैंक की जानकारी  कलेक्ट्रेट के लोक सूचना अधिकारी से मांगी जाती है तो उस आवेदन को बैंक के सीईओ को लोक सूचना अधिकारी बताते हुए अंतरित कर दिया जाता है। 
हाल में जानकारी न मिलने पर जब लोक सूचना अधिकारी कलेक्ट्रेट विदिशा के विरुद्ध प्रथम अपील की गई तो सुनवाई के लिए बैंक को लोक सूचना अधिकारी बताकर सूचना पत्र जारी किया गया। 
खास बात यह है कि अपर कलेक्टर ने बैंक अधिकारी को सुनवाई के लिए तलब नहीं किया, जबकि अपीलार्थी को हाजिर रहने के निर्देश दिए गए हैं। सिर्फ इस मामले में ही नहीं अन्य अपीलों में भी प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा लोक सूचना अधिकारियों को सुनवाई में तलब न किया जाकर किस नियम के तहत छूट दी जाती है, समझ से परे है। जबकि अपीलार्थी की उपस्थिति स्वेच्छिक है अनिवार्य नहीं।

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