एमपी धमाका, विदिशा
एक तरफ कलेक्टर अंशुल गुप्ता सरकारी कार्यालय में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए कलेक्ट्रेट में आरटीआई पर कार्यशालाएं कर रहे हैं तो वहीं जिला पंचायत में अधिकारियों को इन चीजों से कोई लेना-देना नहीं है। जिला पंचायत में नियमों को ताक पर रख केंद्र सरकार के इस महत्वपूर्ण कानून को लंबे समय से ताक पर रखा जा रहा है। हालत यह है कि जिला पंचायत के लोक सूचना अधिकारी जानकारी छुपाते हैं और उसी मामले में अपील की सुनवाई भी उन्हीं से कराई जाती है। जबकि सुनवाई का अधिकार जिला पंचायत सीईओ को दिया गया है।
मिली जानकारी के अनुसार कलेक्टर कार्यालय के लोक सूचना अधिकारी से सूचना का अधिकार के तहत सागर और विदिशा सांसदों की अध्यक्षता में हुई दिशा की बैठकों की जानकारी मांगी गई थी। मामला जिला पंचायत से संबंधित होने के कारण कलेक्ट्रेट द्वारा आवेदन जिला पंचायत को अंतरित कर समय सीमा में जानकारी उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए थे, लेकिन जिला पंचायत की लोक सूचना अधिकारी ने हमेशा की तरह आरटीआई आवेदन को गंभीरता से न लेकर जानकारी उपलब्ध नहीं कराई और जब मामले की प्रथम अपील अपर कलेक्टर के समक्ष की गई और जिला पंचायत की लोक सूचना अधिकारी को जानकारी लगी तो उन्होंने पिछली तारीख में शुल्क का पत्र जारी कर खानापूर्ति करने का प्रयास किया।
प्रथम अपील की सुनवाई आज 9 जून को शाम 4 बजे जिला पंचायत सीईओ के समक्ष रखी गई थी, लेकिन सीईओ की अनुपस्थिति में लोक सूचना अधिकारी ने ही अपील की सुनवाई कर ली और अपीलार्थी के कथन दर्ज किए। अब सवाल इस बात का है कि क्या लोक सूचना अधिकारी को अपील सुनवाई का अधिकार है? और है भी तो वे क्या अपने ही विरुद्ध की गई अपील की सुनवाई कर सकते हैं। कुल मिलाकर जिला पंचायत में सूचना का अधिकार कानून का मखौल उड़ाया जा रहा है और अधिकारी तमाशबीन बने हुए हैं।