छोटे बच्चे के जीवन में सुख भी आते हैं, और दुख भी। जब सुख आते हैं, तो वह खुश रहता है, और जब दुख आते हैं, तो घबरा जाता है और परेशान हो जाता है। "ऐसी स्थिति में वह अपने बड़े भाई बहन माता-पिता आदि की ओर देखता है। और सोचता है, कि कोई मेरी ओर देखे, मेरे दुख को समझे, और मेरी सहायता करे। तब वह रोने लगता है।" "उस समय यदि उसके माता पिता बड़े भाई बहन आदि उसकी सहायता करते हैं, उसको रोने से चुप कराते हैं। उसके आंसू पोंछ देते हैं। तो वह कुछ अच्छा अनुभव करता है।"
परंतु यह तो बच्चों के साथ होता है। यदि आप भी बच्चों की तरह सारा जीवन दूसरों की ओर ही देखते रहे, और अपनी समस्याएं सुलझाना स्वयं नहीं सीखे, तो आप भी जीवन भर बच्चे ही बने रहेंगे। *"बचपन में दूसरों की सहायता लेनी चाहिए, परंतु जीवन भर नहीं।" "क्योंकि यह आत्मनिर्भर होने की स्थिति नहीं है, बल्कि पराधीनता की स्थिति है। पराधीनता की स्थिति में अधिक सुख नहीं होता। इसलिए यह स्थिति अधिक सुख दायक नहीं है।"
आप कब तक बच्चे बन रहेंगे? कब तक दूसरों की सहायता लेने के लिए उनका मुंह देखेंगे? क्या कभी आत्म निर्भर होना नहीं चाहेंगे? यदि आप आत्मनिर्भर हो जाएंगे, तो स्वाधीन स्वतंत्र हो जाने से आप अधिक सुखी रहेंगे। *"यदि आप ऐसा चाहते हों, तो आप के जीवन में जब भी कोई कठिनाई आए, तब दूसरों का मुंह न देखें। अपनी योग्यता बनाकर अपनी क्षमता से ही अपनी समस्याओं को सुलझाएं। जब आप इतने योग्य एवं समर्थ हो जाएंगे, कि जीवन में समस्याएं आने पर आप रोएंगे नहीं। और यदि कभी रोना आ भी जाए, तो अपने आंसू स्वयं पोंछ लेंगे, अर्थात अपनी समस्याएं स्वयं सुलझा लेंगे, उस दिन आप समझ लीजिएगा, कि अब आप बड़े हो गए हैं।"*
जब तक आप के जीवन में यह स्थिति नहीं आती, तब तक यहीं मानिएगा, कि "अभी मैं बच्चा हूं। अभी मैं पराधीन हूं। अभी मैं स्वाधीन स्वतंत्र नहीं हो पाया।" "यह स्थिति बचपन में तो ठीक है, पर जीवन भर ऐसी स्थिति बनाए रखना ठीक नहीं है, सुखदायक नहीं है।"
"अतः अपने माता पिता गुरुजनों के आदेश निर्देश का पालन करते हुए उनकी सहायता से अपनी योग्यता को बढ़ाएं। जीवन की समस्याओं को स्वयं सुलझाना सीखें। और एक योग्य व्यक्ति बनकर अपनी समस्याओं को स्वयं सुलझाकर सदा सुखी रहें।" "कभी-कभी आवश्यकता पड़ने पर दूसरों की सहायता लेने का निषेध नहीं है। मैं तो इतना कहना चाहता हूं, कि "सदा ही पराधीन न रहें। क्योंकि यह स्थिति सुखदायक नहीं होती।"