पत्रकारिता- पत्रकारों के हितार्थ बने संगठन जोड़तोड़ पर आधारित क्यों ?
– राकेश चौकसे
बदलते दौर में पत्रकारिता में विश्वसनीयता बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। एक तरफ आधुनिक तकनीक की चकाचौंध है, दूसरी तरफ "लिफाफा संस्कृति" और बढ़ती व्यावसायिकता की मार। आरटीआई के इस युग में जहां सच्चाई तक पहुँचने के साधन तो बढ़े हैं, वहीं पत्रकारों के सामने निष्पक्षता के साथ टिके रहना पहले से कहीं कठिन हो गया है।
आज पत्रकारिता प्रिंट से वेब मीडिया तक फैल चुकी है। पहले जहां समाचार पत्र ही मुख्य माध्यम थे, अब सोशल मीडिया और टीवी चैनलों ने समाचारों की परिभाषा ही बदल दी है। हालांकि तकनीकी विकास ने पत्रकारिता को गति दी है, लेकिन इसके साथ पत्रकारिता की आत्मा भी दबती जा रही है।
पत्रकारिता में आज प्रतिष्ठा का पैमाना बदल गया है – अब योग्यता की जगह नेटवर्क, दबाव और मार्केटिंग का बोलबाला है। सच्चे पत्रकारों के लिए यह माहौल मुश्किल भरा है, लेकिन यही संघर्ष उनकी पहचान भी बनाता है।
क्या सच बोलना अब भी गलत है?
जब पत्रकारिता ईमानदारी से की जाती है, तब सत्ता डरती है – और यही पत्रकार की असली ताकत होती है। आज भी कई पत्रकार ऐसे हैं जो तमाम दबावों के बावजूद ईमानदार पत्रकारिता कर रहे हैं। संकट हमेशा पत्रकारिता के साथ रहा है – और आगे भी रहेगा – लेकिन इसी संघर्ष में उसकी विश्वसनीयता और सार्थकता छिपी है।
आज पत्रकार केवल खबर नहीं बना रहे, वे समाज का आईना बनकर उसकी दशा-दिशा तय कर रहे हैं। हालांकि इस दौरान कई बार पारिवारिक जिम्मेदारियों और पेशेवर मजबूरियों के बीच उन्हें समझौते भी करने पड़ते हैं, लेकिन यह भी समय की मांग है।
पत्रकार सुरक्षा कानून: अधूरी उम्मीदें
छत्तीसगढ़ देश का दूसरा राज्य है जहाँ पत्रकार सुरक्षा कानून 2023 लागू किया गया है, लेकिन इसके अमल में कई खामियाँ हैं। न जिला स्तरीय कमेटियाँ बनीं, न राज्य स्तरीय बैठकें हुईं। पत्रकारों को इसका लाभ नहीं मिल रहा। कानून में यह व्यवस्था है कि किसी भी पत्रकार के खिलाफ शिकायत पहले कमेटी में जाएगी, फिर जांच के बाद कार्रवाई होगी, लेकिन हकीकत इसके उलट है।
पत्रकारों को अभी भी जागरूक और संगठित होने की जरूरत है, ताकि वे इस कानून का सही लाभ उठा सकें और अपने पेशे को सुरक्षित रख सकें।
प्रिंट मीडिया: पत्रकारिता की गंगोत्री
प्रिंट मीडिया आज भी पत्रकारिता की आत्मा है। यह वह माध्यम है जहाँ समाचार केवल "सूचना" नहीं, बल्कि "संवेदना" के साथ प्रकाशित होता है। टीवी में जहाँ दुख बिकता है, वहीं अखबारों में वह साझा किया जाता है। टीवी और वेब मीडिया तात्कालिक हैं, लेकिन प्रिंट मीडिया अब भी स्थायी प्रभाव छोड़ता है।
सोशल मीडिया आज एक बड़ी ताकत बन चुका है। इसके माध्यम से गाँवों और छोटे शहरों की पत्रकारिता भी सामने आ रही है। लेकिन इसका कोई मानदंड नहीं है। कोई भी ऐप डाउनलोड कर खुद को पत्रकार घोषित कर सकता है। इससे पत्रकारिता की साख पर सवाल उठ रहे हैं।
निष्कर्ष:
पत्रकारिता का भविष्य तभी सुरक्षित रहेगा जब पत्रकार निष्पक्ष, जागरूक और साहसी बने रहें। तकनीक चाहे जितनी भी बदल जाए, पत्रकार की कलम की स्याही सच्चाई से भीगती रहनी चाहिए। यही पत्रकारिता की सबसे बड़ी ताकत है – और यही उसकी पहचान।
किन्तु समय के साथ पत्रकारिता क्षेत्र ने राजनीतिक दलों का रूप लेकर पूरा स्वरूप बदल दिया है! मेरा पद मेरी कुर्सी मेरे लोग पर आधारित पत्रकारिता से शोषित और पीड़ित का भला नहीं हो सकता..........