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जब मुख्य सूचना आयुक्त ही अवैधानिक आदेश पारित करने लगें तो.....!


लोक निर्माण विभाग के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर की गाड़ी की लॉग बुक, टूर डायरी और खर्चों की जानकारी नहीं देने की अपील पर मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा अवैधानिक आदेश पारित किए जाने से संबंधित पत्रकार दीपक तिवारी के सवाल पर मध्य प्रदेश के पूर्व सूचना आयुक्त श्री आत्मदीप ने इस फैसले पर आश्चर्य जताकर अन्यायपूर्ण बताया है।
उन्होंने कहा है कि इस मामले में राज्यपाल को तो शिकायत करें ही, हाई कोर्ट भी जरूर जाएं। नतीजा वहीं से मिलेगा,जो आपके पक्ष में होगा।
क्योंकि मुख्य सूचना आयुक्त का आदेश सरासर विधि विरुद्ध है। 

*  लोक सेवक द्वारा ड्यूटी के लिए उपयोग किए गए वाहन की लॉग बुक और टूर डायरी की जानकारी किसी भी दृष्टि से व्यक्तिगत जानकारी नहीं होती है ,बल्कि पब्लिक डॉक्यूमेंट होती है।
इसलिए आपके द्वारा पहले बिंदु में मांगी गई यह जानकारी व्यक्तिगत बता कर नहीं देना सरासर गैरकानूनी है।

 * खर्चे से जुड़े दूसरे बिंदु की जानकारी निर्धारित अवधि में नहीं  देने के बावजूद सूचना आयोग द्वारा लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं करना आरटीआई एक्ट की दृष्टि से सर्वेथा अमान्य है। 
इस मामले में मुख्य सूचना आयुक्त ने दोषी लोक सूचना अधिकारी को दंडित करना तो दूर , उसे फटकार तक नहीं लगाई है और न ही कोई चेतावनी दी है। लोक सूचना अधिकारी ने भी अपनी गलती पर खेद तक व्यक्त नहीं किया है।

* इस प्रकरण में  धारा 7 के प्रावधान का, बिना किसी उचित कारण के सरासर उल्लंघन करने वाले लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध धारा 20 के अंतर्गत दंडात्मक कार्यवाही किया जाना न्याय संगत होता।

 * रिट याचिका की तैयारी के लिए आप हाई कोर्ट की वेबसाइट या हाई कोर्ट एडवोकेट के जरिए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के ऐसे आदेश जुटा सकते हैं, 
जिनमें निर्धारित अवधि में जानकारी न देकर धारा 7 का उल्लंघन करने वाले लोक सूचना अधिकारी को दंडित करने के निर्देश दिए गए हैं। 

* धारा 7 का उल्लंघन करने वाले लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध धारा 20 में दंडात्मक प्रावधान किए गए हैं,
जिनकी मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा पारित आदेश में पूरी तरह अनदेखी की गई है।

* आप हाई कोर्ट के ऐसे आदेश भी सर्च कर सकते हैं ,जिनमें शासकीय ड्यूटी में लगे वाहन की लाग बुक को लोक दस्तावेज माना गया है। 

आरटीआई एक्ट की धारा 2  (F) में ऐसी लाग बुक को "सूचना" की परिभाषा में शामिल किया गया है, जिसे देने से इनकार नहीं किया जा सकता है।

* आपकी आरटीआई के दोनों बिंदुओं के संबंध में सूचना आयोग के समक्ष लोक सूचना अधिकारी के कथन / उत्तर का कोई वैधानिक आधार नहीं है। 
उन्होंने बदनीयती से सूचना छुपाने के लिए सर्वथा निराधार उत्तर दिया है। 
ऐसा उत्तर स्वीकार करने की अनुमति न्यायिक विवेक और आरटीआई एक्ट के प्रावधान हरगिज नहीं देते हैं।

* इस विधि विरुद्ध उत्तर को स्वीकार कर मुख्य सूचना आयुक्त ने अपने अर्ध न्यायिक दायित्व का समुचित निर्वहन नहीं किया है।
बल्कि दोषी लोक सूचना अधिकारी को बचाने की कार्यवाही की है।

इसलिए इस अन्यायपूर्ण निर्णय को उच्च न्यायालय में चुनौती अवश्य दी जानी चाहिए। ताकि भविष्य में ऐसे अन्यायपूर्ण आदेश पारित करने पर रोक लग सके।

* कोर्ट जाने के खर्च की भरपाई :
आप रिट याचिका में हाई कोर्ट से समय पर सूचना नहीं मिलने से आपको हुई शारीरिक, मानसिक व आर्थिक क्षति के लिए न्यायोचित मुआवजा दिलाने की मांग कर सकते हैं।

अवैधानिक आदेश पारित करने वाले मुख्य सूचना आयुक्त से मुकदमे का संपूर्ण खर्च दिलाने की भी मांग कर सकते हैं।

हाई कोर्ट ने रिट याचिकाकर्ताओं की ऐसी दोनों मांगे स्वीकार की भी हैं।

राज्य सूचना आयुक्त के नाते हम और श्री राहुल सिंह ऐसे आदेश पारित कर चुके हैं, जिनमें सरकारी काम में उपयोग किए गए वाहन की लाग बुक और टूर डायरी को सार्वजनिक दस्तावेज बताते हुए उनकी जानकारी अविलंब देने के लिए निर्देशित किया गया है।

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