जिस भारत भूमि में कभी बच्चे श्रीराम और लव-कुश जैसे तेजस्वी और मर्यादित उदाहरणों को अपना आदर्श मानते थे, वहीं आज उसी धरती पर मोबाइल गेम नामक मायावी राक्षस विभिन्न विभिन्न स्वरूपों में आकर बच्चों के जीवन को निगलता जा रहा है।
आज के युग में जब माता-पिता सोचते हैं कि बच्चा मोबाइल में ‘खेल’ रहा है, उन्हें यह नहीं पता कि वह खेल नहीं, एक अंधकारमय कर्ज़ और मानसिक अधोगति का द्वार है।
रामायण काल में 14 वर्ष की उम्र में प्रभु श्रीराम ने वनों में जाकर ऋषियों की रक्षा की थी और आज का 14 वर्षीय बालक ऑनलाइन गेम की लत में 10 लाख रुपये के कर्ज में डूब गया है! जी हाँ, यह कोई कल्पना नहीं—वास्तविक समाचार है। ये खेल अब केवल खेल नहीं, 'डिजिटल रावण' बन चुके हैं, जो बच्चों को अपने मायावी मृग की तरफ दौड़ाते हैं, और अंततः उन्हें अंधकार में ले जाते हैं।
यह मायाजाल धीरे-धीरे चलता है। पहले तो खेल मुफ्त होता है, कोई संदेह नहीं होता। फिर जैसे-जैसे स्तर बढ़ते हैं, बालक को बेहतर बनने के लिए नए वस्त्र, अस्त्र-शस्त्र, शक्तियाँ खरीदनी पड़ती हैं। जब जेब खर्च खत्म हो जाता है, तब बच्चा चोरी-छिपे माता-पिता के खातों से या साहूकारों के मोबाइल एप्स से उधारी लेने लगता है। और ये उधारी भी कोई सामान्य नहीं—10% मासिक ब्याज पर! यह तो रावण की सोने की लंका भी खा जाए।
इसका असर केवल धन पर नहीं, मन पर भी पड़ता है। पढ़ाई में गिरावट आती है, चिड़चिड़ापन बढ़ता है, मानसिक तनाव जन्म लेता है। बच्चा समाज से कट जाता है, और कई बार तो यह आत्मघाती प्रवृत्तियों तक पहुँच जाता है। यह केवल एक बालक का पतन नहीं, यह पूरे समाज की चेतना का पतन है।
इस संकट से केवल वही बचा सकता है जिसे प्रभु श्रीराम का विवेक प्राप्त हो। अभिभावकों को अपने जीवन में वही धैर्य, वही संयम और वही मार्गदर्शन लाना होगा जो अयोध्या के महलों में दशरथ और कौशल्या ने अपने पुत्रों के लिए अपनाया था।
बच्चों से संवाद करें, जैसे राजा दशरथ अपने पुत्रों से करते थे। मोबाइल का उपयोग सीमित करें, मर्यादा और संयम सिखाएँ। संगीत, चित्रकला, योग और सत्संग जैसे वैकल्पिक मार्ग बच्चों के सामने रखें जो उनके मन को स्थिर और सात्विक बनाए। मोहल्ले में सामूहिक खेल, रामलीला, मेलजोल—ये सब जीवन में सामाजिकता और संवाद को जीवित रखते हैं।
हमारी यह भी अपेक्षा है कि शासन और समाज इस दिशा में जागरूक हो। बच्चों को लक्ष्य बना कर चलने वाले गेम विज्ञापनों पर रोक लगे। इन-ऐप परचेज़ पर नियंत्रण हो। स्कूलों में डिजिटल संयम और मोबाइल मर्यादा पर विशेष शिक्षा दी जाए।
जिस प्रकार लक्ष्मण ने सीता जी की रक्षा हेतु लक्ष्मणरेखा खींची थी, उसी प्रकार हमें भी अपने बच्चों के जीवन में मोबाइल की लक्ष्मणरेखा खींचनी होगी। बच्चों को रामायण, महाभारत, संतों की जीवनी और भारत के बलिदानी वीरों से जोड़ना होगा—ना कि मोबाइल की स्क्रीन पर दौड़ते नकली योद्धाओं से।