आरटीआई अधिनियम, 2005 भारत के नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार देता है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा मिलता है।
यह कानून 12 अक्टूबर, 2005 से लागू हुआ है।
~ मुख्य प्रावधान ~
* सूचना का अधिकार (धारा 3) :
* यह धारा हर भारतीय व्यक्ति को सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा धारित या उनके नियंत्रण में रहने वाली जानकारी प्राप्त करने का अधिकार देती है।
* "सूचना" में रिकॉर्ड, दस्तावेज, ज्ञापन, ई-मेल, राय, सलाह, प्रेस विज्ञप्ति, परिपत्र, आदेश, लॉगबुक, अनुबंध, रिपोर्ट, कागजात, नमूने, मॉडल, किसी भी इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखी गई डेटा सामग्री और किसी भी निजी निकाय से संबंधित जानकारी शामिल है, जिसे किसी अन्य कानून के तहत भी सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
* सार्वजनिक प्राधिकरणों पर दायित्व (धारा 4) -
* स्वैच्छिक प्रकटीकरण :
हर सार्वजनिक प्राधिकरण के लिए यह अनिवार्य है कि वह नियमित रूप से 25 बिंदुओं से संबंधित जानकारी स्वतः सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करें, ताकि नागरिकों को आरटीआई आवेदन दाखिल करने की आवश्यकता कम हो। इसमें संगठन का विवरण, कार्य और कर्तव्य, अधिकारियों और कर्मचारियों की शक्तियां और कर्तव्य, नियम, विनियम, निर्देश, मैनुअल और रिकॉर्ड रखने की श्रेणियां आदि शामिल हैं।
* रिकॉर्ड का रखरखाव:
सभी रिकॉर्ड को इस तरह से अनुक्रमित और सूचीबद्ध किया जाना चाहिए, जिससे उन्हें आसानी से एक्सेस किया जा सके।
*लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) और सहायक लोक (जन) सूचना अधिकारी (एपीआईओ) (धारा 5):
* प्रत्येक सार्वजनिक प्राधिकरण को पीआईओ नियुक्त करना होगा, जो नागरिकों के सूचना पाने के लिए दिए गए के आवेदनों का निपटारा करेगा।
* एपीआईओ उप-विभागीय या उप-जिला स्तर पर नियुक्त किए जा सकते हैं, ताकि पीआईओ को अनुरोध प्राप्त करने और आगे भेजने में सहायता मिल सके।
* सूचना प्राप्त करने की प्रक्रिया (धारा 6):
* आवेदन हिंदी, अंग्रेजी या उस क्षेत्र की आधिकारिक भाषा में लिखित रूप में या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से प्रस्तुत किया जा सकता है।
* आवेदक को आवेदन के साथ निर्धारित शुल्क (आमतौर पर ₹10) का भुगतान करना होगा।
* आवेदक को सूचना मांगने का कारण बताने की आवश्यकता नहीं है।
* अनुरोध का निपटान (धारा 7):
* पीआईओ को अनुरोध प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर सूचना प्रदान करनी होगी या अनुरोध अस्वीकार करना होगा।
* यदि जानकारी किसी व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता से संबंधित है, तो इसे 48 घंटे के भीतर प्रदान किया जाना चाहिए।
* यदि सूचना किसी तीसरे पक्ष से संबंधित है, तो अतिरिक्त 10 दिन (कुल 40 दिन) की अनुमति दी जा सकती है।
* यदि पीआईओ निर्धारित समय सीमा के भीतर निर्णय देने में विफल रहता है, तो यह माना जाएगा कि अनुरोध अस्वीकार कर दिया गया है।
* छूट (धारा 8):
* कुछ प्रकार की जानकारी का खुलासा करने से छूट दी गई है, जैसे कि:
* भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों या विदेशी राज्य के साथ संबंधों को प्रभावित करने वाली जानकारी।
* संसद या किसी राज्य विधानमंडल के विशेषाधिकार का उल्लंघन करने वाली जानकारी।
* वाणिज्यिक विश्वास, व्यापार रहस्य या बौद्धिक संपदा सहित जानकारी, जिसके प्रकटीकरण से तीसरे पक्ष की प्रतिस्पर्धी स्थिति को नुकसान होगा, जब तक कि बड़े सार्वजनिक हित में प्रकटीकरण उचित न हो।
* किसी व्यक्ति की निजता पर अनुचित आक्रमण करने वाली जानकारी।
* मंत्रिमंडल के कागजात, जिसमें मंत्रिपरिषद, सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श के रिकॉर्ड शामिल हैं।
* अपीलीय प्राधिकारी (धारा 19):
* पहली अपील: यदि कोई आवेदक पीआईओ के निर्णय से संतुष्ट नहीं है या निर्धारित समय सीमा के भीतर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलती है, तो वह 30 दिनों के भीतर पीआईओ से वरिष्ठ अधिकारी के पास पहली अपील दायर कर सकता है।
* दूसरी अपील: पहली अपीलीय प्राधिकारी के निर्णय से असंतुष्ट होने पर, आवेदक को केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) या राज्य सूचना आयोग (SIC) के पास 90 दिनों के भीतर दूसरी अपील दायर करने का अधिकार है।
* केंद्रीय सूचना आयोग (धारा 12) और राज्य सूचना आयोग (धारा 15):
* आरटीआई अधिनियम के तहत केंद्रीय और राज्य स्तर पर सर्वोच्च अपीलीय निकाय।
* शिकायतों की जांच करते हैं, अपील पर निर्णय लेते हैं और अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने की निगरानी करते हैं।
* आयोगों में एक मुख्य सूचना आयुक्त और अधिकतम 10 सूचना आयुक्त होते हैं।
* दंड (धारा 20):
* यदि पीआईओ बिना किसी उचित कारण के जानकारी देने से इनकार करता है, या दुर्भावनापूर्ण तरीके से जानकारी देने से इनकार करता है, या गलत, अधूरी या भ्रामक जानकारी देता है, तो उस पर प्रति दिन ₹250 का जुर्माना लगाया जा सकता है, जो अधिकतम ₹25,000 तक हो सकता है।
* आयोग अनुशासनात्मक कार्रवाई की भी सिफारिश कर सकता है।
अधिनियम का महत्व -
* पारदर्शिता और जवाबदेही:
सरकारी कामकाज में पारदर्शिता बढ़ाता है।
* भ्रष्टाचार पर अंकुश:
नागरिकों को सरकारी कामकाज पर नजर रखने का अधिकार देकर भ्रष्टाचार को कम करने में मदद करता है।
* नागरिक सशक्तिकरण:
नागरिकों को सूचित निर्णय लेने और सरकार को जवाबदेह ठहराने का अधिकार देता है।
* सुशासन को बढ़ावा:
शासन प्रक्रियाओं में सुधार और दक्षता को बढ़ावा देता है।