दीपक तिवारी, विदिशा
विदिशा जिले में बारिश के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों के श्मशान घाट के पहुंच मार्गों की बदहाली और अव्यवस्थाओं के मामले मीडिया की सुर्खियों में बने हुए हैं। इसमें सबसे बड़ी समस्या जो दिखाई दे रही है वो है श्मशान घाट तक पहुंचने वाले रोडों की। इस तरह का वीडियो और समाचार पहली बार सामने नहीं आया है। एक साल पहले विदिशा के सौंथर गांव का भी वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें पानी से भरे खेतों से निकालकर अर्थी को श्मशान घाट तक पहुंचाया गया था। ग्यारसपुर के सीहोद चक गांव में भी कीचड़ से लथपथ सड़क का मामला दिखाई दिया। इसलिए जिम्मेदारों को श्मशान घाट से पहले सड़कों पर ध्यान देने की जरूरत है। सड़कें ठीक होंगी तो श्मशान घाट सुधरने में देर नहीं लगेगी।
कोई देहांत हो जाए तो परिवार के लोग उनके दूरस्थ रहने वाले अन्य परिवार जन, रिश्तेदारों के आने का इंतजार दो पांच घंटे से लेकर 24 घंटे तक भी इंतजार कर लेते हैं, तो क्या पानी गिरते में ही श्मशान तक ले जाकर जलाना जरूरी है? जी नहीं। आजकल दो तीन दिन की झिर नहीं लगती। दो घंटे चार घंटे के बाद एक आध घंटा पानी खुलता भी है। इसलिए अंतिम संस्कार बगैर बारिश के किया जा सकता है। भले शेड न हो या क्षतिग्रस्त हो। पर पानी चार घंटे रुकने के बाद भी और 24 घंटे बाद भी रास्ते की कीचड़ और रास्ते की असुविधा से नहीं बचा जा सकता।
इसलिए पहले आवश्यक है, श्मशान तक जाने का रास्ता। जो बहुत से गांव में है ही नहीं या है तो निजी भूमि से जाना पड़ता है या शासकीय जमीन पर अतिक्रमण कर दबा लिया गया है, या शासकीय रास्ता उपलब्ध है तो उस पर पक्की या किसी भी तरह की सड़क बनी नहीं है ।
इसलिए जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को पहले कैसे भी सड़क की व्यवस्था करनी चाहिए। यदि पहुंच मार्ग होगा तो अन्य सुविधाएं आसानी से हो पाएंगी। लेकिन इस दिशा में विदिशा जिले में कोई काम नहीं हो रहा।
जिन गांवों में श्मशान के ऊशासकीय रास्ता नहीं है तो क्या जनप्रतिनिधि ग्रामीणों से संवाद कर एक दस फिट का रास्ता दानपत्र नहीं करा सकते? या अपनी राशि से उस रास्ते को बनाने (चाहे ग्रेवल चाहे सीसी या आवश्यकतानुसार) को उपलब्ध नहीं करा सकते, बजाए सरपंचों या अपने अनुयायियों को खुश करने के। अनुपयोगी या कम उपयोगी चबूतरे या नाली सीसी के लिए धन उपलब्ध कराने या उनके ( सरपंचों ) खुद के खेतों तक को ग्रेवल देने के बजाए। रोड पर एक बार राशि खर्च होगी। इसलिए पहले श्मशान घाट की रोड अनिवार्य हो,
उसके बाद खुश करते रहें चबूतरे, सीसी और ग्रेवल से सरपंचों को।
सवाल ये भी है कि क्या राजस्व विभाग बगैर भेदभाव और बगैर दबाव के ऐसे रास्ते अतिक्रमण मुक्त नहीं करा सकता?
और ग्रामीण विकास विभाग के आला अधिकारी क्या सख्ती से ये नियम बनाने की हिम्मत दिखा सकेंगे कि जब तक श्मशान घाटों का रास्ता या शेड का काम पूर्ण और सुविधायुक्त नहीं होगा तब तक कोई अन्य कार्य की अनुमति या राशि नहीं दी जाएगी। या विभाग एक बार मनरेगा से सिर्फ शांति धामों तक की ग्रेवल रोड नहीं दे सकता? बजाए खेतों के लिए! या शासन की राशि जो पंचायतों को दी जाती है उसमें एक बार यह विधान डाल दिया जाए कि इस बार की राशि सिर्फ श्मशान पहुंच मार्ग पर खर्च होगी उसके बाद अन्य कार्य होंगे।
या आखिर कब तक जिम्मेदार अधिकारी सुई को फांसी और तलवार को माफी की तर्ज पर मामला आने पर तरह अपने छोटे कर्मचारियों का गला पकड़ता रहेगा?