✍️ प्रस्तुति: संकल्प रामराज्य चैनल
"जिनके चरणों की धूल पाने को सम्राट तरसे, जिनकी मौन दृष्टि से राजयोग उदय हो — वे थे देवरहा बाबा।"
उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद की पावन भूमि पर जन्मे ये विलक्षण संत न केवल भारतभूमि की आंतरिक चेतना के परिचायक थे, अपितु सम्पूर्ण संसार के लिए ध्यान, योग, और मानवता के जीवंत प्रतिमान भी थे। उनके जन्मकाल को लेकर विविध मत हैं — कोई उन्हें 250 वर्ष का मानता है, कोई 500, तो कोई तो यहाँ तक मानता है कि वे 900 वर्षों तक पृथ्वी पर विचरण करते रहे।
◉ बाबा का तपस्वी जीवन एवं सिद्धियाँ
मचान पर विराजमान, अन्न त्याग कर केवल दूध, शहद और श्रीफल-रस पर जीवन व्यतीत करने वाले देवरहा बाबा को अष्टांग योग में परम पारंगत माना जाता था। उनके विषय में यह प्रसिद्ध था कि वे खेचरी मुद्रा के सिद्ध थे — जिसके प्रभाव से वे शरीर की क्षुधा, आयु, गमन-आगमन और रूप तक पर नियंत्रण कर सकते थे।
उनके आश्रम में बबूल के वृक्ष कांटेविहीन होते, सुगंध से परिपूर्ण रहते, और ऐसा प्रतीत होता कि वनस्पतियाँ उनसे संवाद करती थीं। उनके हाथ से मिलने वाला प्रसाद – जो अदृश्य रूप से प्रकट होता – साधकों को चमत्कृत कर देता। यह कोई चमत्कार नहीं, अपितु योगबल का प्रसाद था।
◉ राजाओं से लेकर राष्ट्रपतियों तक के आराध्य
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने जब बाबा को बचपन में देखा तो उन्होंने तत्काल कहा – "यह बालक राजा बनेगा।" और कालांतर में वह राष्ट्रपति बना। राजीव गांधी, इंदिरा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, सभी बाबा के चरणों में उपस्थित हुए।
1911 में जब जार्ज पंचम भारत आया, तो इंग्लैंड से ही उसे यह आदेश मिला – “यदि किसी सच्चे संत से मिलना हो तो देवरहा बाबा से मिलना।” और वह पूरे लाव-लश्कर के साथ देवरिया के दियारा क्षेत्र तक पहुँचा।
◉ प्रकृति के रक्षक, जीवों के सहचर
बाबा वन्य जीवन और पर्यावरण के संरक्षक थे। वृक्षों को वे ‘जीवित संवादकर्ता’ मानते थे। एक बार जब राजीव गांधी के आगमन पर एक बबूल की डाल काटने का प्रयास किया गया, तो बाबा ने मना कर दिया — "यह वृक्ष मेरा सहचर है, इससे कोई छेड़छाड़ नहीं होगी।" और आश्चर्य – दो घंटे में ही प्रधानमंत्री कार्यालय से कार्यक्रम स्थगित होने की सूचना आ गई।
◉ समाधिस्थ, तेजस्वी, दिव्यदृष्टा
बाबा 30 मिनट तक जल में बिना श्वास के स्थित रह सकते थे। उन्हें पशु-भाषा का ज्ञान था, और जंगली जानवर उनके सामने सहज हो जाते थे। वे त्रिबंध सिद्धासन में समाधिस्थ हो जाते, और उनके तेजस्वी नेत्र, कड़क वाणी और स्मरण-शक्ति अद्भुत थी — दशकों बाद मिलने वाले को भी नाम, वंश और इतिहास सहित पहचान लेते।
उनके विषय में यह भी प्रसिद्ध है कि वे नहीं चाहते तो रिवॉल्वर से गोली नहीं चलती, और कैमरा उनकी छवि नहीं कैद कर पाता। यह सब उनके योगबल का ही प्रभाव था, जिसका उन्होंने कभी कोई प्रदर्शन नहीं किया।
◉ चरणामृत से वरदानी सिद्धि तक
बाबा का आशीर्वाद उनके चरणों से प्राप्त होता — कोई उनके चरणों को सिर पर रख लेता, कोई चरणामृत ले जाता। वे किसी से भेद नहीं रखते, सबको समान दृष्टि से देखते और भरपूर दया बरसाते। उनका बताशा-मखाना पाने को हजारों लोग प्रतीक्षा करते।
◉ मूक विदाई : १९ जून १९९०, योगिनी एकादशी
११ जून से बाबा ने दर्शन देना बंद कर दिया। यमुना की लहरें विचलित थीं, आकाश में बादल छा गए थे। और फिर १९ जून को, जब योगिनी एकादशी का पुण्य दिन आया, तो सायं ४ बजे, प्रकृति के क्रंदन के साथ बाबा का शरीर स्थिर हो गया। उनका यह देहावसान नहीं था — यह संयमित आत्मतुल्य विलय था।
❖ वास्तव में, देवरहा बाबा कोई एक संत नहीं, सम्पूर्ण संत-परंपरा के प्रतिनिधि थे।
उनका जीवन ऋषियुगीन स्मृतियों का पुनर्जागरण था। उन्होंने न केवल योगशक्ति, तप और ध्यान का उदाहरण प्रस्तुत किया, अपितु वृक्षों, जीवों, प्रकृति और मनुष्यता के साथ कैसे जिया जाए – यह भी सिखाया।
वह भारत की धार्मिक चेतना के स्तम्भ, योग परंपरा के रक्षक और मानवता के पथप्रदर्शक थे। उनका जीवन आज भी उन साधकों के लिए प्रेरणा का अमृतकुंभ है, जो आत्मसाक्षात्कार की दिशा में चलने की इच्छा रखते हैं।
🔸 "देवरहा बाबा" — नाम नहीं, एक सनातन चेतना हैं।
🔸 जिनकी स्मृति मात्र से साधक का हृदय योगमय हो जाए।
❖ हर हर योगीश्वर!
❖ हर हर देवरहा बाबा!
❖ वंदे तपोमयी भारतभूमि को, जिसने ऐसे दिव्य योगिराज को जन्म दिया।