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कुंडेश्वर धाम का अद्वितीय शिवलिंग: हर दिन तिल बराबर बढ़ जाते हैं भगवान






दीपक तिवारी, टीकमगढ़ 
 
श्रावण मास के मौके पर एमपी धमाका अपने पाठकों को श्री कुंडेश्वर धाम के ऐसे महा शिवलिंग के दर्शन कराने के साथ रहस्य बताने जा रहा है जो अलौकिक महाशिवलिंग है। 

बुंदेलखंड की देसी रियासतों में सबसे बड़ी रियासत ओरछा राज्य की अंतिम राजधानी ग्राम टेहरी को विकसित कर टीकमगढ़ नगर बसाया गया था जो वर्तमान में मध्यप्रदेश का एक जिला है और जिला मुख्यालय टीकमगढ़ से ललितपुर जाने वाले स्टेट हाईवे पर टीकमगढ़ से मात्र 6 किलोमीटर की दूरी पर कुंडेश्वर धाम स्थित है इस ग्राम को कुंडेश्वर के नाम से जाना जाता है। सभी की मनोकामना पूर्ण करने वाले कुंडेश्वर महादेव के प्राकटय के बारे में कहा जाता है कि चौदहवीं शताब्दी में  एक टीले पर एक छोटा सा 7-8 परिवारों का पुरा बस गया। एक दिन अपने निवास पर धनती नाम की महिला धान कूट रही थी। मूसल पर प्रहार से ओखली के चावल रक्तरंजित हो गए और प्रहार से उसे ऐसे आभास हुआ जैसे किसी के सर में लगा हो। ऊखल पर एक कूड़ा से ढक दिया और इस रहस्य को स्पष्ट करने वह महिला नीचे की ओर आई। जहां श्रीमद् भागवत की कथा हो रही थी। कथाकार ने  महिला के अनुरोध पर वहां जाकर देखा तो वह भी आश्चर्यचकित हो गए। 
महाप्रभु वल्लभाचार्य ने ओखली के समीप खुदवाया। तो शिवलिंग दिखा। जब शिवलिंग की गहराई पता नहीं हो सकी तब उन्होंने ब्राह्मणों के द्वारा विधि पूर्वक शिवलिंग की प्रतिष्ठा कराई। चूंकि कुंडा से वह ओखली ढकी गई। इस कारण स्थानीय स्तर पर  कूड़ा देव नाम प्रसिद्ध हो गया। इसके बाद यहां छोटा सा एक द्वारा बनाया गया। धीरे-धीरे स्थान का विकास हुआ। 
सिद्ध तीर्थ कुंडेश्वर धाम अति प्राचीन तपस्थली एवं पर्यटन पर्यटक ग्राम नामक पुस्तक में कहा गया है कि कई वर्ष बाद बुंदेला स्थापत्य कला के जनक वीर सिंह जूदेव एक बार यहां पधारे। स्थान का निरीक्षण कर उन्होंने उसी छोटे मठ के चारों ओर एक विशाल चबूतरा का निर्माण करा दिया। इस स्थान पर उन्होंने अनेक मरम्मत के कार्य करवाए तथा सन्यासी सिद्ध महात्मा भी कुंडेश्वर में आने जाने लगे। इसके बाद वीर सिंह जूदेव के कार्यकाल में पुरानी मढ़ी तुड़वाकर निर्माण हेतु जब नींव खोदी गई तो स्वयंभू  महा शिवलिंग में 3-3 फुट के अंतर टूटी हुई जलधारियां मिलती गईं। बताते हैं कि 25 फुट तक की ही खुदाई हो सकी थी कि जलधारा निकल गई। इससे शिवलिंग की गहराई का अता पता ना चल सका। खुदाई का कार्य रोककर नींव भराई का काम शुरू किया गया। संगमरमर का मंदिर खुले रूप में बनवाया गया। सात जलहरी टूटी हुई प्राप्त होने से प्रतीत होता है कि हजारों वर्ष की अवधि में शिवलिंग का आकार तिल तिल बढ़कर विशाल होने पर जलहरी खंडित होती गई और नए जलहरी ऊपर से पहनाई जाती रहीं। वर्तमान में आठवीं जलहरी भी ऊपर से पहनाई हुई दिखाई देती है। उसके सामने जो आज एक खंडित बड़ा नंदी है उसके चरणों के नीचे संवत 1201 विक्रम अंकित है। जो इस नंदी प्रतिमा को साढ़े 800 वर्ष प्राचीन बताता है। मंदिर के सामने मेलों के  आयोजन हेतु बहुत बड़ा मैदान है जिसमें दुकान लेकर बाहरी दुकानदारों की दुकानें हैं। मेले एवं विशेष पर्वों के अवसर पर दूर-दूर से आने वाले लाखों दर्शनार्थियों को कुंड में स्नान की सुविधा दी गई है। मेला मैदान से लगभग 20 सीढियां चढ़कर मंदिर के द्वार में प्रवेश करते ही श्री कुंडेश्वर धाम के महा शिवलिंग के दर्शन होते हैं। 1993 में नया विशाल मंदिर बनाया गया। नवीन मंदिर का गगनचुंबी शिखर देखते ही बनता है। इस तीर्थ धाम के मुख्य मंदिर के चारों ओर संगमरमर का विशाल प्रांगण है, जिसमें हजारों भक्तों एवं श्रद्धालु एक साथ भगवान श्री कुंडेश्वर महाशिवलिग की परिक्रमा कर सकते हैं। पीछे वाली चारदिवारी में कुछ विशिष्ट प्राचीन मूर्तियां विशेष दर्शनीय हैं। इन मूर्तियों में दाढ़ी वाले शिव, कमलासना लक्ष्मी जी, माता पार्वती जी एवं अन्य भगवान हैं।
ऐसे सिद्ध तीर्थ स्थलों में वैसे तो सदैव रोज ही उत्सव एवं मेला जैसा वातावरण बना रहता है क्योंकि दूर-दूर से सैकड़ों श्रद्धालु आस्था के साथ वहां पहुंचते हैं फिर वह शिवधाम है तो प्रति सोमवार को दर्शनार्थियों की भीड़ उमड़ती ही है। आमतौर पर शिव धाम तीर्थों की परंपराएं श्री कुंडेश्वर धाम में भी उसी भक्ति भाव एवं उत्साह के साथ देखने को मिलती हैं।

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