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सत्य, सदाचार, भजन, सत्संग का सुख सबसे श्रेष्ठ: श्री राजेन्द्र दास जी महाराज


एमपी धमाका 
जो लोग धर्म का आचरण करते हैं, धर्मपूर्वक धन का उपार्जन करते हैं, समय से विवाहादि करके स्त्री के साथ यज्ञ-आराधना में धन का उपयोग करते हैं, उनके लिए यह लोक और परलोक दोनों ही सुख के स्थान हैं। जो विद्या, तप, दान, भजन के लिए प्रयत्न न करके विषयों के क्षणिक तामसी सुखों में, उनकी प्राप्ति में प्रयत्न करते हैं उन्हें दोनों लोकों में दुःख ही मिलता है। बुद्धिमान वह है जो दोनों लोकों को सुधारे। सत्य, सदाचार, भजन, सत्संग का सुख सबसे श्रेष्ठ है उसे ही प्राप्त करने के लिये इच्छा और प्रयत्न करना चाहिए। धन एवं सुख सामग्रियों का उपार्जन इस प्रकार करना चाहिए कि उसमें पाप न हो। किसी को कष्ट न हो अथवा पाप से बचने का यत्न करने पर भी यदि पाप बन जाए तो उसका प्रायश्चित करना चाहिए।
पूज्य श्री राजेंद्र दास जी महाराज, सूर श्याम गौशाला 
परासोली, गोवर्धन,

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