यह बात त्रेता युग की है। एक बार वशिष्ठ जी ने दशरथ जी से कहा राजन शनि महाराज रोहिणी नक्षत्र का भेदन करने वाले हैं। राजन जब शनि देव रोहिणी नक्षत्र का भेदन करेंगे और तब इस पृथ्वी पर भयंकर अकाल पड़ेगा और अकाल भी 12 वर्ष का लगातार पड़ेगा । तो आपके पूर्वजों के काल में ऐसा समय कभी आया नहीं । यह आपके काल में शनि देव रोहिणी नक्षत्र का भेदन करने वाले हैं। तब महाराज दशरथ ने कहा की कोई तो उपाय होगा शनि देव का। तब वशिष्ठ जी ने कहा इसका कोई उपाय नहीं है। यह योग दुर्निवार है। यह आएगा ही आएगा। तभी चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ ने अपने योग बल से अपना दिव्य रथ प्रकट किया और उस रथ पर सवार होकर सूर्य मंडल का भेदन करते हुए शनि ग्रह के निकट पहुंच गए। अपने धनुष की प्रत्यंचा को टंकारते हुए कहा कि या तो शनि देव आप अपना निर्णय वापस लो, नहीं तो मुझसे युद्ध करो। शनि देव मुस्कुराते हुए नीचे की ओर दृष्टि रखते हैं। दशरथ जी अपने दिव्यास्त्रों का प्रयोग शनिदेव के ऊपर करते हैं। पर दशरथ जी के वह सारे दिव्य अस्त्र-शस्त्र शनि लोक में जाते ही तेजहीन हो जाते थे। परंतु महाराज दशरथ घबराएं नहीं और युद्ध करते ही रहे। अंत में ब्रह्मास्त्र का प्रयोग महाराज दशरथ शनिदेव के ऊपर करने के लिए तत्पर होते हैं। इस वक्त शनि महाराज अपनी दृष्टि महाराज दशरथ के रथ के ऊपर डालते हैं। शनि देव की दृष्टि के कारण घोड़े सहित महाराज दशरथ का रथ राख हो गया। तब आकाश से महाराज दशरथ गिरने लगे। इसी समय आकाश ग़मन कर रहे श्री गिद्धराज जी जटायू देखते हैं कि अगर महाराज दशरथ को ना बचाया गया, तो उनके प्राण चले जाएंगे। तब गिरते हुए राजा दशरथ को अपनी पीठ के ऊपर बिठा लिया और उनके प्राण बचा लिए और जटायु जी ने महाराज दशरथ को कहा देवताओं से जोर जबरदस्ती काम नहीं लेना चाहिए। उनकी स्तुति एवं प्रार्थना करके इनकी अनुकूलता प्राप्त करनी चाहिए। आपने युद्ध करके तो देख लिया। अब आप स्तुति करके भी देख लो। तब महाराज दशरथ द्वारा दशरथ कृत शनि स्तोत्र रचित करके शनि देव को सुनाया गया और प्रार्थना की गई। महाराज दशरथ की याचना के उपरांत शनि देव प्रसन्न हुए और राजा दशरथ को वरदान मांगने को कहा। महाराज दशरथ ने तीन वरदान शनिदेव से मांगे ।
1.(पहले वरदान).. आप रोहिणी नक्षत्र का भेदन ना करें। जब तक यह सृष्टि है लगातार 12 वर्ष अकाल ना पड़े ।
2.(दूसरा वरदान)...जो जातक दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ नित करेगा। शनि की महादशा साढ़े साती, ढैया उस जातक के अनुकूल रहेगी।
3.(तीसरा वरदान).... जो व्यक्ति हमारी अंत्येष्टि स्थल के दर्शन करेगा शनि उसको कभी परेशान नहीं करेगा ।
चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ जी का अंत्येष्टि स्थल श्री राम जन्मभूमि श्री अयोध्या जी से से 13 किलोमीटर दूर पूरा बाजार नमक जगह के पास है और इस जगह को दशरथ समाधि स्थल के नाम से जाना जाता है । श्री अयोध्या धाम आजमगढ़ हाईवे के ऊपर। (शनि देव एवं महाराज दशरथ जी का यह वार्तालाप पद्म पुराण में अंकित है) जय जय श्री राम जय शनि देव चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ की जय।
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