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चुरू की रेत से निकला पौधा ग्वालियर की धरती में बना वट वृक्ष


तपस्वी श्री दशरथ उपाध्याय की कहानी

केके उपाध्याय 

रेगिस्तान की तपती रेत और कड़कड़ाती ठंड की पृष्ठभूमि में बसा है राजस्थान का ऐतिहासिक जिला चुरू। यही वह धरती है, जहां विजयादशमी के शुभ दिन पर एक ऐसे सपूत ने जन्म लिया जिसने अपना जीवन समाज, संगठन और राष्ट्र के लिए अर्पित कर दिया। वह सपूत हैं मेरे पापा —श्री दशरथ उपाध्याय।

संघ से आरंभ हुई यात्रा

बचपन से ही राष्ट्रवाद और समाजसेवा की ज्योति उनके जीवन में जल उठी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा से जुड़े और पथ-प्रदर्शक के रूप में उन्हें श्री सुंदर सिंह भंडारी जी का सान्निध्य मिला। इसी से उनके जीवन की दिशा और लक्ष्य तय हो गया—राष्ट्र निर्माण की यात्रा।

कर्मभूमि बना ग्वालियर

रोज़गार के कारण भले ही उन्हें अपने जन्मस्थान चुरू को छोड़ना पड़ा, लेकिन विचारधारा का बंधन कभी ढीला नहीं पड़ा। ग्वालियर उनकी कर्मभूमि बनी, परंतु संघ और संगठन की साधना वहीं भी जारी रही। संघ की शाखा, मज़दूर संघ का कार्य और भाजपा के लिए निस्वार्थ श्रम—यह सब उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया।

आपातकाल का दौर : भय के बीच साहस

1975 का आपातकाल देश की लोकतांत्रिक आत्मा पर लगाया गया ताला था। भय, सेंसरशिप और दमन का वह कालखंड आज भी रोंगटे खड़ा कर देता है। उस कठिन दौर में जब अधिकांश लोग चुप्पी साधे हुए थे, दशरथ उपाध्याय जी भूमिगत रहकर संगठन का काम करते रहे। यह वही तपस्या थी, जब पार्टी के लिए कार्य करना, संघ के लिए समय देना, मानो खतरे से खेलना था। लेकिन उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

पार्टी और संघ को खून-पसीने से सींचा

उस समय भाजपा का कार्यकर्ता बनना आसान नहीं था। समाज में प्रतिरोध, उपेक्षा और कठिनाइयां सामने थीं। परन्तु दशरथ जी ने हर कठिनाई को साधना बना लिया। उन्होंने संघ और भाजपा के कार्य को अपने खून-पसीने से सींचा और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मजबूत आधार खड़ा किया।

इतिहास और लोकदेवताओं का गहन अध्ययन

राजस्थान का इतिहास उनके व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा रहा। महाराणा प्रताप जैसे अमर वीरों पर उन्होंने गहन अध्ययन किया। इतना कि उनके ज्ञान और शोध को सुनकर कोई भी सहज ही प्रभावित हो जाए।
लोकदेवता जाहर वीर गोगा पर उनका विशेष शोध और अध्ययन उल्लेखनीय है। राजस्थान की लोकगाथाएं, लोककथाएं और क़िस्से वे इस तरह सुनाते कि श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाए। उनका अपना अनूठा अंदाज़ था, जो लोक संस्कृति को जीवित रखने वाला था।

प्रेरणा का स्रोत

श्री दशरथ उपाध्याय का जीवन हमें यह संदेश देता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी आदर्श और विश्वास पर अडिग रहना ही सच्ची साधना है। चाहे रेगिस्तान की तपती धूप हो या राजनीति का कठिन संघर्ष, उन्होंने अपने संकल्प को कभी डगमगाने नहीं दिया।

“आपका जीवन तपस्या, त्याग और समर्पण की अनूठी मिसाल है। आपके ज्ञान, संस्कार और प्रेरणा से हमारा परिवार और समाज गौरवान्वित है। जन्मदिन की शुभकामनाएं पापा। आपका स्नेह और आशीर्वाद सतत बना रहे।

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