दीपक तिवारी
विदिशा। श्री दादाजी मनोकामना पूर्ण सिद्ध श्री हनुमान मंदिर रंगई रेलवे पुल विदिशा के महंत पूज्य गुरुदेव महामंडलेश्वर 1008 श्री विशंभर दास रामायणी जी महाराज का कहना है कि हम जब गुरु की शरण में जाते हैं तो अहंकाररूपी अंधकार दूर हो जाता है। उन्होंने कहा कि संसार में हमारे जितने भी संबंध जुड़े हैं, माता-पिता, पुत्र-पुत्री, पति-पत्नी आदि सब झूठे हैं, केवल भगवान से संबंध सदा के लिए है वह कभी टूटता नहीं। भगवान से हमारा संबंध पहले से जुड़ा है। यह हमारे ऊपर है कि हम भगवान को किस रूप में मानते हैं। जाकी रही भावना जैसी, जिसका जैसा मन होता है, जैसी भावना होती है, उसे भगवान उसी रूप में दिखाई देते हैं।
महाराज जी ने कहा कि कोई भगवान को माता सीता के रूप में देखता है, कोई पुत्र रूप में, कोई पिता रूप में, कोई भाई रूप में और कोई गुरु रूप में देखता है। भगवान से हमारे अनेक संबंध हैं, जिस प्रकार से हमारा संबंध जुड़ जाए, भगवान उसी रूप में कृपा करने लगते हैं।
दुख और विपत्ति पर बोलते हुए महाराज जी ने कहा कि जब हनुमान जी सीता जी का पता लगाकर लंका से लौटते हैं, तो भगवान श्रीराम पूछते हैं कि कहो हनुमान सीता कैसी हैं। तब हनुमान जी कहते हैं-
नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट ।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट॥
' नाम पाहरू दिवस निसि ' ..... अर्थात सीता जी के चारों तरफ आप के नाम का पहरा है। क्योंकि वे रात दिन आप के नाम का ही जप करती हैं । सदैव राम जी का ही ध्यान धरती हैं और जब भी आंखें खोलती हैं तो अपने चरणों में नज़र टिकाकर आप के चरण कमलों को ही याद करती रहती हैं। सीता जी राममय हैं।
तो ' जाहिं प्रान केहिं बाट '..... सोचिये कि आपके घर के चारों तरफ कड़ा पहरा है। छत और ज़मीन की तरफ से भी किसी के घुसने का मार्ग बंद कर दिया है, क्या कोई चोर अंदर घुस सकता है..? ऐसे ही सीता जी ने सभी ओर से श्री रामजी का रक्षा कवच धारण कर लिया है ..इस प्रकार वे अपने प्राणों की रक्षा करती हैं।
कह हनुमंत विपत्ति प्रभु सोई। जब तब सुमिरन भजन ना होई।।
हे प्रभु सबसे बड़ी विपत्ति तो आपको भूल जाना है, आपका भजन न हो पाना है। इससे बड़ा कोई दुख नहीं है। और जब भगवान की आराधना होने लगती है तो आधि-व्याधियां दूर होने लगती हैं। इसी तरह जब हम गुरु की शरण में जाते हैं, तो हमारा मोह रूपी, अहंकार रूपी अंधकार दूर हो जाता है।