Type Here to Get Search Results !
BREAKING NEWS

जब मां पार्वती और मां गंगा के बीच हुआ था विवाद और गंगाजी हो गईं थीं श्रापित...


देवाधिदेव महादेव को जगतपिता भी कहा जाता है, क्योंकि उनका विवाह इस संसार की शक्ति, मां पार्वती से हुआ था। शिव और शक्ति के संयोजन से ही हमारी यह प्रकृति चल रही है। वे दोनों, एक दूसरे के अर्धांग हैं और एक दूसरे के बिना अपूर्ण भी हैं। जहां, एक तरफ भगवान शिव, अनादि के सृजनकर्ता हैं, वहीं, माता पार्वती, प्रकृति का मूल स्वरूप हैं। 

माता पार्वती, राजा हिमावन की पुत्री हैं, जिसके अनुसार, उन्हें, शैलपुत्री भी कहा जाता है। सनातन धर्म के अनुसार, देवी गंगा का अवतरण भी हिमालय से हुआ था, जिसके अनुसार, वे, माता पार्वती की बहन लगती हैं। एक कथा के अनुसार, एक बार, इन दोनों बहनों में शिव जी को लेकर विवाद हो गया, जो संभाले नहीं संभल रहा था। आइए जानतें हैं माता पार्वती और गंगा जी के विवाद की रोचक कथा के बारे में...
 
कैलाश पर्वत पर शिव शक्ति 

एक बार, शिव जी, अपने परम निवास, कैलाश पर्वत पर ध्यानस्थ बैठे थे, जहां उनके साथ में ही माता पार्वती भी ध्यान में मग्न थीं। शिव और शक्ति का यह सुदंर स्वरूप, एक साथ बहुत ही मनमोहक लग रहा था। ध्यानमग्न, माता पार्वती और अपने प्रभु शिव जी की शोभा को उनके परम भक्त नंदी जी निहार रहे थे। दोनों का यह सुंदर स्वरूप देख, नंदी जी के नेत्रों से खुशी के आंसू बहने लगे। अपने भक्त की आंखों से बहते अश्रुओं का भान जैसे ही महादेव को हुआ, उन्होंने अपने नेत्र खोले।

महादेव के समक्ष, साक्षात थीं गंगा जी

महादेव ने जैसे ही भक्त की चिंता में नेत्र खोले, उन्होंने देखा, सामने गंगा जी हाथ जोड़े खड़ी थीं। गंगा जी को देख, महादेव हैरान होते हुए बोले, “देवी गंगे, आप?!” तो उत्तर में मां गंगा बोलीं, “हे आदिपुरुष! आपके इस रूप को देखकर, मैं आप पर मोहित हो गई हूं। कृपा कर, मुझे पत्नी रूप में स्वीकार करें।”

मां पार्वती का क्रोध

जैसे ही मां गंगा के स्वर, माता पार्वती के कानों में पड़े, वे हैरान हो गईं। मां गंगा की यह बात सुनकर उनके नेत्र लाल हो गए और क्रोधवश, वे बोल पड़ीं, “देवी गंगा, सीमा ना लांघिए! मत भूलिए महादेव हमारे पति हैं!” यह सुनकर ठिठोली करते हुए मां गंगा बोलीं, “अरे बहन, क्या फर्क पड़ता है? वैसे भी भले ही तुम महादेव की पत्नी हो फिर भी देवाधिदेव महादेव, अपने शीश पर तो मुझे ही धारण करते हैं। जहां महादेव के साथ तुम नहीं जा सकतीं, मैं तो वहां भी पहुंच ही जाती हूं!”
गंगा की यह बात सुनते ही माता पार्वती के क्रोध का ठिकाना ना रहा, उनका क्रोध से मुख भयंकर हो गया। 

मां पार्वती का गंगा 
को श्राप

मां गंगा के वचन सुनकर, मां पार्वती, उन्हें श्राप देते हुए बोलीं, “गंगे! तुमने मेरी बहन होने की सीमा लांघ दी है। मैं तुम्हे श्राप देती हूं कि तुम में मृत देह बहेंगी! जग जन के पाप धोते-धोते, तुम मैली हो जाओगी!  तुम्हारा यह अहम टूटेगा और तुम्हारा रंग भी काला पड़ जाएगा!”

मां गंगा की याचना 
मां गंगा, यह सुनते ही महादेव और मां पार्वती के चरणों में गिर गईं। वे, अपनी भूल का पश्चाताप कर, मां पार्वती और महादेव से क्षमा याचना करने लगीं। तब महादेव ने उनसे कहा कि “हे गंगे! यह श्राप तो अब फलित होकर रहेगा परन्तु आपके पश्चाताप से प्रसन्न होकर हम आपको इस श्राप से मुक्ति देते हैं। 

हे गंगे! आप जन मानस के पापों से दूषित होंगी परन्तु संत जन के स्नान से आपकी शुद्धि, आपको वापस प्राप्त होगी।” इस प्रकार, भगवान शिव ने मां गंगा को प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया। इसके बाद से ही गंगा में स्नान से पाप धुलने लगे। तब से ही लोग, गंगा में स्नान करने के लिए दूर-दूर से आते हैं और भूल-चूक में हुए पापों से मुक्ति पाते हैं।

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Design by - Blogger Templates |